अगर ऐसा हुआ तो पत्नी बेच सकती है पति की संपत्ति, हाईकोर्ट का बड़ा फैसला Property Rights

By Shruti Singh

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आज के समय में प्रॉपर्टी को लेकर कई तरह के विवाद, नियम और कानून सामने आते रहते हैं। लेकिन हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने एक ऐसा महत्वपूर्ण फैसला दिया है, जो हजारों परिवारों के लिए राहत लेकर आया है। इस फैसले में कोर्ट ने साफ कहा कि अगर पति किसी गंभीर बीमारी या कोमा जैसी स्थिति में है और निर्णय लेने में असमर्थ है, तो पत्नी को उसकी संपत्ति को बेचने या गिरवी रखने का कानूनी अधिकार मिल सकता है।

क्या था मामला?

चेन्नई की एक महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उसका पति बीते पांच महीनों से कोमा में था और इलाज के लिए भारी खर्च की जरूरत थी। घर का खर्च और मेडिकल बिल बढ़ते जा रहे थे, लेकिन सारी संपत्ति और बैंक अकाउंट पति के नाम पर थे। ऐसे में महिला कुछ भी करने में असमर्थ थी।

पहले सिंगल बेंच ने उसकी याचिका खारिज कर दी, लेकिन महिला ने हार नहीं मानी। उसने डबल बेंच में अपील की, जहां से उसे बड़ी राहत मिली।

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हाईकोर्ट ने क्या कहा?

मद्रास हाईकोर्ट की डबल बेंच – जस्टिस जी. आर. स्वामिनाथन और पी. बी. बालाजी – ने माना कि:

अंत में कोर्ट ने आदेश दिया:

फैसला क्यों है खास?

भारत में ज्यादातर संपत्ति पुरुषों के नाम पर होती है। अगर वह बीमार या अक्षम हो जाए, तो परिवार गंभीर संकट में पड़ सकता है। इस फैसले से ये स्पष्ट हो गया कि:

  • पत्नी को भी कानूनी गार्जियन बनाया जा सकता है।

  • कोर्ट हालात को समझकर व्यावहारिक समाधान दे सकता है।

  • यह फैसला एक नई मिसाल बन सकता है।

किन परिस्थितियों में मिल सकता है ऐसा अधिकार?

हर केस अलग होता है, लेकिन इन स्थितियों में कोर्ट से गार्जियन बनने की अनुमति मिल सकती है:

  • जब पति कोमा में हो या बेहोशी की हालत में हो।

  • जब पति मानसिक रूप से अक्षम हो।

  • जब परिवार को इलाज, बच्चों की पढ़ाई या घर खर्च के लिए पैसों की जरूरत हो।

  • जब पत्नी सारी जिम्मेदारियां निभा रही हो और निर्णय लेने वाला कोई न हो।

क्या है कानून की नजर में?

भारत के संपत्ति कानूनों के अनुसार किसी की संपत्ति को उसकी अनुमति के बिना बेचना गैरकानूनी है। लेकिन जब कोई व्यक्ति निर्णय लेने में अक्षम हो, तो “Special Guardianship” के तहत कोर्ट से इजाजत ली जा सकती है।

इस मामले में कोर्ट ने साबित किया कि:

  • न्याय सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं है।

  • कोर्ट इंसानियत और व्यवहारिकता दोनों को समझता है।

  • जरूरतमंद को राहत देना भी कानून का हिस्सा है।

महिलाओं को क्या करना चाहिए?

अगर आप भी ऐसी किसी परिस्थिति से गुजर रही हैं, तो घबराने की जरूरत नहीं है। आप यह कदम उठा सकती हैं:

  1. सभी मेडिकल दस्तावेज एकत्र करें।

  2. किसी अनुभवी वकील से सलाह लें।

  3. कोर्ट में अभिभावक बनने की याचिका दायर करें।

  4. प्रक्रिया सही तरीके से पूरी करें।

निष्कर्ष

मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला एक मानवीय और व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। जब पति या परिवार का कोई सदस्य निर्णय लेने में असमर्थ हो, तो कोर्ट से मदद लेकर पत्नी को भी संपत्ति पर अधिकार मिल सकता है। यह फैसला न केवल महिलाओं के लिए राहत है, बल्कि पूरे परिवार के लिए एक सहारा बन सकता है।

इसलिए अगर आप भी ऐसी किसी स्थिति में हैं, तो कानूनी रास्ता अपनाएं और अपने अधिकारों की रक्षा करें। कोर्ट आपकी मदद के लिए है – बस पहल करने की जरूरत है।

Shruti Singh

Shruti Singh is a skilled writer and editor at a leading news platform, known for her sharp analysis and crisp reporting on government schemes, current affairs, technology, and the automobile sector. Her clear storytelling and impactful insights have earned her a loyal readership and a respected place in modern journalism.

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